Thursday, October 18, 2012

विश्व खाद्य दिवस


एक ओर हमारे और आपके घर में रोज सुबह रात का बचा हुआ खाना बासी समझकर फेंक दिया जाता है तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें एक वक्त का खाना तक नसीब नहीं होता और वह भूख से मर रहे हैं. कमोबेश हर विकसित और विकासशील देश की यही कहानी है. दुनिया में पैदा किए जाने वाले खाद्य पदार्थ में से करीब आधा हर साल बिना खाए सड़ जाता है. गरीब देशों में इनकी बड़ी मात्रा खेतों के नजदीक ही बर्बाद हो जाती है. विशेषज्ञों के अनुसार इस बर्बादी को आसानी से आधा किया जा सकता है. अगर ऐसा किया जा सके तो यह एक तरह से पैदावार में 15-25 फीसदी वृद्धि के बराबर होगी. अमीर देश भी अपने कुल खाद्यान्न उत्पादन का करीब आधा बर्बाद कर देते हैं लेकिन इनके तरीके जरा हटकर होते हैं.एक ओर दुनिया में हथियारों की होड़ चल रही है और अरबों रुपए खर्च हो रहे हैं तो दूसरी ओर आज भी 85 करोड़ 50 लाख ऐसे बदनसीब पुरुष, महिलाएं और बच्चे हैं जो भूखे पेट सोने को मजबूर हैं. संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में खाद्यान्न का इतना भंडार है जो प्रत्येक स्त्री, पुरुष और बच्चे का पेट भरने के लिए पर्याप्त है लेकिन इसके बावजूद आज 85 करोड़ 50 से अधिक ऐसे लोग हैं जो दीर्घकालिक भुखमरी और कुपोषण या अल्प पोषण की समस्या से जूझ रहे हैं.


रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि यदि 2015 तक हमें भूख से निपटना है और गरीबी से ग्रस्त लोगों की संख्या प्रथम सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य से आधी करनी है तो हमें अपने प्रयासों को दोगुनी गति से आगे बढाना होगा.


खाद्यान्न की कमी ने विश्व के सर्वोच्च संगठनों और सरकारों को भी सोचने पर विवश कर दिया है. भारत में हाल ही में "खाद्य सुरक्षा बिल" लाया गया है लेकिन इस बिल का पास होना या ना होना इसकी सफलता नहीं है. हम सब जानते हैं भारत में खाद्यान्न की कमी को खास मुद्दा नहीं है बल्कि सार्वजनिक आपूर्ति प्रणाली और खाद्यान्न भंडारण की समस्या असली समस्या है. भारत में लाखों टन अनाज खुले में सड़ रहा है. यह सब ऐसे समय हो रहा है जब करोड़ों लोग भूखे पेट सो रहे हैं और छह साल से छोटे बच्चों में से 47 फीसदी कुपोषण के शिकार हैं.ऐसा नहीं है कि भारत में खाद्य भंडारण के लिए कोई कानून नहीं है. 1979 में खाद्यान्न बचाओ कार्यक्रम शुरू किया गया था. इसके तहत किसानों में जागरूकता पैदा करने और उन्हें सस्ते दामों पर भंडारण के लिए टंकियां उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन इसके बावजूद आज भी लाखों टन अनाज बर्बाद होता है.खाद्यान्न की इसी समस्या को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने विश्व खाद्य दिवस की घोषणा की थी. 16 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में विश्व खाद्य दिवस की शुरुआत हुई जो अब तक चली आ रही है. इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया में भुखमरी खत्म करना है. आज भी विश्व में करोड़ों लोग भुखमरी के शिकार हैं. हमें विश्व से भुखमरी मिटाने के लिए अत्याधुनिक तरीके से खेती करनी होगी. इस साल खाद्य दिवस की थीम "खाद्य सामग्रियों की बढ़ती कीमतों को स्थिर" करना है.


बढ़ते पेट्रोल के दामों और जनसंख्या विस्फोट की वजह से आज खाद्य पदार्थों के भाव आसमान पर जा रहे हैं जिसे काबू करना किसी भी सरकार के बस में नहीं है. ऐसे में सही रणनीति और किसानों को प्रोत्साहन देने से ही हम खाद्यान्न की समस्या को दूर कर सकते हैं.


हमें समझना होगा कि भोजन का अधिकार आर्थिक,नैतिक और राजनीतिक रूप से ही अनिवार्य नहीं है बल्कि यह एक कानूनी दायित्व भी है.वर्तमान समय और परिस्थितियों में दुनिया के सभी देशों को सामुदायिक, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तरों पर अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनभावना को संगठित करना होगा.



 

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